
मुजफ्फरपुर के चर्चित शेल्टर होम के मामले में म्युनिसिपल बिल्डिंग ट्रिब्यूनल ने फिलहाल बिल्डिंग तोड़ने के मामले में एक अहम फैसला दिया है। ट्रिब्यूनल ने शेल्टर होम तोड़ने के आदेश को निरस्त करते हुए मुजफ्फरपुर के नगर अयुक्त को नए सिरे से शेल्टर होम के मालिक का पक्ष सुन आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद ट्रिब्यूनल ने मामले पर सुनवाई कर अपना फैसला दिया है। बिल्डिंग ट्रिब्यूनल ने ब्रजेश ठाकुर की पत्नी कुमारी आशा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की। उनके वकील रंजन कुमार दुबे ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नगर निगम ने इस शेल्टर होम के खिलाफ निगरानी केस दर्ज किया था। उनका कहना था कि विवादित मकान का जी-प्लस एक का नक्शा स्वीकृत है, जिसका कागज आवेदिका के पास मौजूद भी है लेकिन इस बिल्डिंग के ऊपर के बने मकान का नक्शे का कागज फिलहाल उनके मुवक्किल के पास मौजूदा नहीं है। जबकि आवेदिका के पति जेल में हैं। उनका यह भी कहना था कि विवादित मकान के अगल-बगल मे बने मकान की जांच नहीं की जा रही है।
वही, अर्जी का विरोध करते हुए मुजफ्फरपुर नगर निगम के वकील ने ट्रिब्यूनल को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मकान को अवैध करार देते हुए कार्रवाई करने का आदेश दिया था जिस के बाद शेल्टर होम पर कार्रवाई करते हुए बिल्डिंग को तोड़ने का आदेश दिया गया है। उनका कहना था कि मुजफ्फरपुर नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही मकान की संरचनाओं की जांच पड़ताल की। जांच में पाया कि मकान के तीन तल्लों का निर्माण बगैर स्वीकृत नक्शे के किया गया है। उन्होंने नगर आयुक्त के आदेश को सही ठहराते हुए अर्जी को ख़ारिज करने की वकालत की।
इस बात पर आवेदिका के वकील रंजन दुबे ने कड़ी आपत्ति जताते हुए ट्रिब्यूनल को बताया कि यदि ऐसा है तो फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मकान तोड़ने की बजाय निगम ने निगरानी केस क्यों दर्ज कर कार्रवाई शुरू की, सीधे मकान क्यों नहीं तोड़ दिया गया। बिल्डिंग ट्रिब्यूनल ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद मुजफ्फरपुर के नगर आयुक्त के आदेश को निरस्त करते हुए नए सिरे से मामले पर सुनवाई कर आदेश पारित करने का आदेश दिया है।